यून्किंग जियान और जुनयोंग लियू… ये दो नाम फिलहाल अमेरिका में चर्चा का विषय बने हुए हैं. 33 साल की जियान और 34 साल के लियू दोनों ही चीनी नागरिक हैं जिनपर आरोप है कि इन्होंने अमेरिका में एक बेहद खतरनाक रोगाणु की तस्करी की है जो फसलों में रोग पैदा करता है. दोनों चीनी नागरिकों को षड्यंत्र रचने, अमेरिका में तस्करी करने, झूठे बयान देने और वीजा धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है.
मंगलवार को अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया कि दोनों चीनी नागरिकों ने अमेरिका में ‘फ्यूजेरियम ग्रैमिनीरम’ नामक रोगाणु कवक की तस्करी की है जिसे वैज्ञानिक कृषि आतंकवाद का हथियार बताते हैं.
ऐसे सामने आई एग्रो टेरिरिज्म की पूरी साजिश
अधिकारियों ने बताया कि जियान और उसके बॉयफ्रेंड लियू को कथित तौर पर अपने रिसर्च के लिए चीनी सरकार से फंडिंग मिल रही थी. बयान में कहा गया कि लियू एक चीनी यूनिवर्सिटी में काम करता है और वहीं पर वो फ्यूजेरियम ग्रैमिनीरम पर रिसर्च कर रहा है.
पूछताछ के दौरान उसने पहले तो झूठ बोला और फिर स्वीकार किया कि ग्रैमिनीरम को डेट्रॉयट मेट्रोपॉलिटन हवाई अड्डे के जरिए वो अमेरिका लेकर आने वाला था. वो मिशिगन यूनिवर्सिटी की लैब में इस पर रिसर्च करना चाहता था जहां उसकी गर्लफ्रेंड जियान काम करती था. माना जा रहा है कि दोनों चीनी नागरिक चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए हैं.
चीनी नागरिकों के खिलाफ दायल हलफनामे के मुताबिक, 27 जुलाई, 2024 को लियू ने अमेरिका में एंट्री ली और उसने अधिकारियों को बताया कि वो अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने आया है. उसने बताया कि वो जल्द ही लौट जाएगा क्योंकि उसे चीन में अपना लैब शुरू करना है.
अमेरिकन टेलिविजन नेटवर्क, ABC की रिपोर्ट के मुताबिक, लियू ने कथित तौर पर कहा कि उसके पास कोई काम की चीज नहीं है, लेकिन उसके सामान की दूसरी बार जांच करने पर अधिकारियों को चीनी भाषा में एक नोट, फिल्टर पेपर का एक गोल टुकड़ा जिस पर गोलाकार आकृति बनी हुई थी और चार प्लास्टिक की थैलियां मिलीं, जिनके अंदर लाल रंग की पौधों की सामग्री के छोटे-छोटे गुच्छे थे.
पूछने पर लियू ने अमेरिकी अधिकारियों को बताया कि उसे नहीं पता, ये चीजें कैसे उसके बैग तक पहुंचीं. लेकिन बाद में सख्ती से पूछताछ करने पर सारा सच उगल दिया.
अदालती रिकार्ड के अनुसार उस समय उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था.
शिकायत के अनुसार, ‘लियू ने कहा कि उसने जानबूझकर अपने बैग में नमूने छिपाए थे क्योंकि उसे पता था कि वो जो चीज लेकर जा रहा है, उसके आयात पर प्रतिबंध हैं. लियू ने कबूला कि उसने जानबूझकर नमूनों को टिशू के एक बंडल में रखा था ताकि अमेरिकी अधिकारी उसे ढूंढ न पाएं और अमेरिका में वो अपना रिसर्च जारी रख सके.’
क्या है फ्यूजेरियम ग्रैमिनीरम जिसकी तस्करी के लिए गिरफ्तार हो गए चीनी नागरिक ?
फ्यूजेरियम ग्रैमिनीरम एक बायोलॉजिकल पैथोजेन यानी जैविक रोगाणु है. जैविक रोगाणु एक तरह के सूक्ष्मजीव होते हैं जो इंसानों, पशुओं और पौधों सहित अन्य जीवित जीवों में रोग पैदा कर सकते हैं या उन्हें हानि पहुंचा सकते हैं.
फ्यूजेरियम ग्रैमिनियरम एक हानिकारक कवक है जो गेहूं, जौ, जई और मकई जैसी अनाज की फसलों को संक्रमित करता है. यह फसलों में फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट (FHB) या “स्कैब” नामक बीमारी का कारण बनता है. अगर फसल में यह बीमारी लग जाए तो अनाज की गुणवत्ता खराब होती है और फसल की पैदावार भी बेहद कम हो जाती है.
फसलों में यह कवक लगने के बाद डिऑक्सीनिवेलनॉल और जेरालेनोन जैसे विष पैदा करता है जिससे अनाज खाने लायक नहीं रह जाता है. अनाज भी जहरीला हो सकता है और यह इंसानों और जानवरों की सेहत के लिए खतरा पैदा करता है. अगर फ्यूजेरियम ग्रैमिनियरम से प्रभावित अनाज को कोई खा ले तो उसे उल्टी, लीवर डैमेज और प्रजनन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.
इसके खतरनाक प्रभावों को देखते हुए फ्यूजेरियम ग्रैमिनियरम को खेती और खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा माना जाता है और वैज्ञानिकों ने इसके इस्तेमाल को एग्रो टेररिज्म यानी कृषि आतंकवाद कहा है.
कृषि आतंकवाद क्या है?
सरल शब्दों में कहें तो जैविक एजेंटों का इस्तेमाल करके फसलों को नष्ट करने के लिए खेतों को हथियार बनाना ‘कृषि-आतंकवाद’ कहलाता है. जिन देशों की अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है, उनके लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
इसका मकसद किसी देश की अर्थव्यवस्था को तबाह करना और सामाजिक अशांति पैदा करना है. इस आतंकवाद में पकड़े जाने की संभावना भी बिल्कुल कम होती है और इसकी लागत कम, प्रभावशीलता ज्यादा है.
सबसे बड़ी बात यह कि इस तरह के जैविक हमलों के खिलाफ आपराधिक सजा देने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचा मौजूद नहीं है. इस तरह के जैविक हथियारों के इस्तेमाल की बात नई नहीं है बल्कि इसके मामले पहले भी दिखते रहे हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने ब्रिटेन में आलू की फसलों को “कोलोराडो आलू बीटल” से निशाना बनाया था. आलू की फसल बर्बाद करने वाले कीड़े 1943 में इंग्लैंड में पाए गए थे, जिससे संकेत मिलता है कि एक छोटे पैमाने पर हमला हुआ होगा. कीड़ों को फ्लाइट के जरिए ब्रिटेन में छोड़ा गया था.
मोस्टागनम विश्वविद्यालय के एक रिसर्च पेपर के अनुसार, उसी दौरान जापान ने ‘कृषि-आतंकवाद’ के विकल्प पर भी विचार किया था जिसका उद्देश्य युद्ध जारी रहने पर अमेरिका और सोवियत संघ रूस के गेहूं के खेतों पर रोगाणुओं से हमला करना था.
अमेरिका ने भी 30 टन से ज्यादा पुकिनिया ट्रिटिकी रोगाणुओं का भंडार जमा कर रखा था, जो गेहूं के तने को बर्बाद कर देने वाला फफूंद है. यह दावा किया गया है कि अमेरिका ने शुरू में जापान में चावल की फसल को नष्ट करने की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में उसने जापान को आत्मसमर्पण की खातिर मजबूर करने के लिए परमाणु बम का इस्तेमाल करने का फैसला किया.
भारत भी रहा है कृषि आतंकवाद का शिकार
भारत कृषि पर निर्भर देश है जहां का कृषि क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 17% का योगदान देता है. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की लगभग 55% आबादी कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में लगी हुई है.
पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे प्रमुख कृषि प्रधान राज्यों की सीमाएं पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन पड़ोसियों के साथ मिलती है जिससे भारत पर कृषि आतंकवाद का खतरा और भी सच लगने लगता है.
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की तरफ से प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के अनुसार, 2016 में बांग्लादेश में पाया गया एक जहरीला कवक पश्चिम बंगाल के दो जिलों में पाया गया था.
हालांकि, सरकार ने तीन सालों के लिए दोनों जिलों में गेहूं की खेती पर प्रतिबंध लगाकर गेहूं-ब्लास्ट पैदा करने वाले कवक मैग्नापोर्थे ओराइजे पैथोटाइप ट्रिटिकम (एमओटी) के प्रसार को रोक दिया.
इसके अलावा, बांग्लादेश से सटे अन्य जिलों में अंतरराष्ट्रीय सीमा के 5 किलोमीटर के भीतर खेती पर प्रतिबंध लगा दिया गया. ऐसा माना जाता है कि इस कीटाणु को जानबूझकर भारत की कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र में लाया गया है, लेकिन इसका कोई ठोस सबूत नहीं मिला है.